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रचानाएँ आमंत्रित
आँखों का बुझ न जाये कहीं हारकर दिया
आँखों की दहलीज़ पे आकर बैठ गयी
ख़ामोशी की बर्फ़ पिघल भी सकती है
तू एक झूट जो अब तक हुआ ज़लील नहीं