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रचानाएँ आमंत्रित
तिमिर से लड़ते दीपक का अथक विश्वास देखा था
न जाने अब क्यूं मेरे साथ मेरा मन नहीं जाता
इतना सुन्दर तन-मन पाया ,इससे दुनियांदारी मत कर,