मिलके बहतीं है यहाँ गंगो- जमन
इस देश से ग़रीबी हट कर न हट सकेगी
खिले हैं ज़ख़्म फूलों की तरह हर बार चुटकी में
कर गई लौ दर्दे-दिल की इस तरह रीशन जहाँ
होली
पहचानता है यारो, हमको जहान सारा
मिलते ही गई अपने हबीबों की उदासी