दिल्ली
’देशभक्त मदन मोहन मालवीय’
पंचतंत्र के सपूत
आज का कश्मीर
जीवन- मृत्यु
एक कवि की मृत्यु
होली
पर्यावरण
अश्रु से भीगे आँचल पर सब कुछ धरना होगा
उर्मि का पाथार कैसे करेगा पार, प्रिये
उसकी एक किलक से गूँज उठी कुटिया मेरी
एक पल भी सृष्टि का दुलार नहीं
दीपावली का त्योहार
दीप्ति ही तुम्हारी सौन्दर्यता है
मेरा प्रियतम आया है बावन साल बाद
यह कैसा त्योहार
Aa Raha Hai Gandhi Fir Se
यहाँ एक कण भी सजल आशा का नहीं
हिन्द है वतन हमारा, हम हिन्द के पुजारी
तुम्हारी यादों की स्मृति
बसंत के स्वागत में
देव विभूति से मनुष्यत्व का यह पद्म खिला
विधवा
गंगा
क्या यही हमारा हिन्दुस्तान है
बादल
मानवता के शत्रु
यात्री हूँ दूर देश का
कारवाँ आगे निकल जा रहा
ज्योति
धरा पर आया है वसंत