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रचानाएँ आमंत्रित
चारो और तू दिखता है
अपनी बाँहों में हार दो मुझको
रसा है सावन आँखों से
वीरान है आँखे बिन आँसू
इतनी निर्भरता ठीक नहीं
न जाने कौन-२ से रंग, दिखाते ये लोग
होता तुझ पर है नाज़ मुझे
मैं उड़ी पतंग
जब खुद का जीवन बोझिल हो
पूछ रहा हर मानव से
आवाज़ मेरी में बात नहीं
तेरे खातिर मर गए कितने तो
अफ़सोस तुम्हे तो आज भी है